Gunah Begunah
Material type: TextLanguage: English Publication details: New Delhi Rajkamal Prakashan 2011Description: 287p. ill., PB 21cmISBN:- 9788126720392
- 9788126723218
- 891.433 PUS-G
Item type | Current library | Call number | Materials specified | Status | Date due | Barcode | |
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891.433 PRI-S Shesh Yatra | 891.433 PUS-A Alma Kabutari | 891.433 PUS-C Chaak | 891.433 PUS-G Gunah Begunah | 891.433 PUS-I Idannamam | 891.433 PUS-J Jhoola Nat | 891.433 RAG-C Chiwar |
भारतीय समाज में ताकत का सबसे नजदीकी, सबसे देशी और सबसे नृशंस चेहरादृपुलिस। कोई हिन्दुस्तानी जब कानून कहता है तब भी और जब सरकार कहता है तब भी, उसकी आँखों के सामने कुछ खाकी सा ही रहता है। इसके बावजूद थाने की दीवारों के पीछे क्या होता है हम में से ज्यादातर नहीं जानते। यह उपन्यास हमें इसी दीवार के उस तरफ ले जाता है और उस रहस्यमय दुनिया के कुछ दहशतनाक दृश्य दिखाता है और सो भी एक महिला पुलिसकर्मी की नजरों से। इला जो अपने स्त्री वजूद को अर्थ देने और समाज के लिए कुछ कर गुजरने का हौसला लेकर खाकी वर्दी पहनती है, वहाँ जाकर देखती है कि वह चालाक, कुटिल लेकिन डरपोक मर्दों की दुनिया से निकलकर कुछ ऐसे मर्दों की दुनिया में आ गई है जो और भी ज्यादा क्रूर, हिंसालोलुप और स्त्रीभक्षक हैं। ऐसे मर्द जिनके पास वर्दी और बेल्ट की ताकत भी है, अपनी अधपढ़ मर्दाना कुंठाओं को अंजाम देने की निरंकुश निर्लज्जता भी और सरकारी तंत्र की अबूझता से भयभीत समाज की नजरों से दूर, थाने की अँधेरी कोठरियों में मिलनेवाले रोज-रोज के मौके भी। अपनी बेलाग और बेचैन कहन में यह उपन्यास हमें बताता है कि मनुष्यता के खिलाफ सबसे बीभत्स दृश्य कहीं दूर युद्धों के मोर्चों और परमाणु हमलों में नहीं, यहीं हमारे घरों से कुछ ही दूर, सड़क के उस पार हमारे थानों में अंजाम दिए जाते हैं। और यहाँ उन दृश्यों की साक्षी है बीसवीं सदी में पैदा हुई वह भारतीय स्त्री जिसने अपने समाज के दयनीय पिछड़ेपन के बावजूद मनुष्यता के उच्चतर सपने देखने की सोची है। मर्दाना सत्ता की एक भीषण संरचना यानि भारतीय पुलिस के सामने उस स्त्री के सपनों को रखकर यह उपन्यास एक तरह से उसकी ताकत को भी आजमाता है और कितनी भी पीड़ाजन्य सही, एक उजली सुबह की तरफ इशारा करता है।
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